वो चली गई वो चटाख़ चिड़िया चली गई मिरे आशियाँ में गुज़शता शब वो रुकी मगर दम-ए-सुब्ह फिर से वो उड़ गई उसे उड़ते रहना पसंद था सो चली गई बड़ी शोख़ थी बड़ी तेज़-रौ बड़ा चहचहाती थी मुस्कुराती थी उस के पंखों में कोई दाम-ए-विसाल था मुझे उस का नाम पता नहीं वो कहाँ से आई नहीं ख़बर वो यहीं कहीं पे छुपी हुई तो नहीं यहीं किसी और आँख को दाम-ए-हुस्न में बाँध कर दिल-ए-मुब्तला को असीर-ए-वस्ल किए हुए वो नहीं गई वो यहीं कहीं तो ज़रूर है