याद है आग़ाज़-ए-उल्फ़त का ज़माना याद है डाल कर बाँहों में बाँहें मुस्कुराना याद है ख़म-ब-ख़म ज़ुल्फ़ों का वो चेहरे पे मेरे लोटना भीनी भीनी निकहतों में डूब जाना याद है सुर्ख़ियों से वो झलक उठना रुख़-ए-ज़ौ-रेज़ से लेते लेते नाम मेरा झेंप जाना याद है आगे बढ़ बढ़ कर पलटना और फिर रुकना मिरा इस तरह दिल का मचलना तिलमिलाना याद है वो मिरी बेताबी-ए-दिल से तिरी बे-ताबियाँ वो मिरे शिकवों पे तेरा सर झुकाना याद है वो मिरी पज़मुर्दनी से तेरा हो जाना उदास वो मुझे भोली अदाओं से हँसाना याद है गर कभी ख़ल्वत में छेड़ा क़िस्सा-ए-शाम-ए-फ़िराक़ मुस्कुराना मुस्कुरा कर टाल जाना याद है बे-झिजक मिलते थे मुझ से पास आते थे मिरे वो घड़ी वो वक़्त वो दिलकश ज़माना याद है सोच कर अंजाम-ए-उल्फ़त कुछ झिजकना ख़ुद-बख़ुद दम-ब-दम घबरा के मुझ को आज़माना याद है वो मिरा जज़्बात से घबरा के तुझ से रूठना आबदीदा हो के वो तेरा मनाना याद है याद जिस की ख़ून के आँसू रुलाएगी 'हबीब' वो हिकायत याद है और वो फ़साना याद है