बातों में थी दलील हवाला सुख़न में था तू था तो गुफ़्तुगू का मज़ा अंजुमन में था क़ुरआन की फ़ज़ा में पला था तिरा शुऊ'र इस्लाम का मिज़ाज तिरे बाँकपन में था दिल-दादा-ए-उलूम-ए-फ़रंगी था दिल तिरा लेकिन ख़याल ख़ित्ता-ए-अर्ज़-ए-वतन में था जहल-ए-ख़िज़ाँ का दौर गुलों से था दूर दूर जब तक तिरा वजूद फ़ज़ा-ए-चमन में था लिखी वो दास्तान-ए-ग़म-ए-दजला-ओ-फ़ुरात चक्खा वो ज़ाइक़ा भी जो गंग-ओ-जमन में था सारा सिमट के आ गया तेरे कलाम में जितना भी हुस्न लाला-ओ-सर्व-ओ-समन में था अब इस से बढ़ के बस में तिरे था भी कुछ नहीं मिल्लत को दे दिया वो लहू जो बदन में था राह-ए-अमल दिखाता रहा क़ौम को मगर तू मुतमइन था दिल तिरा रंज-ओ-मेहन में था हर दम मदीना-ओ-नजफ़-ओ-कर्बला की फ़िक्र तेरा कहाँ जवाब मोहब्बत के फ़न में था