रूह-ए-इंसाँ हो गई आज़ाद क्या कहता है कौन फ़िक्र को ताज़ा हवा कैसी घुटन दस्तरस मुफ़्लिस की रोटी तक हुई होने को है मुंसिफ़ी बेदार है ख़्वाबीदा-तर किस के घर दौलत गई वल्लाह आलम जागते हैं नौजवाँ वो सो गए कुछ सुना मिल्लत का हाल इंतिशार-ओ-इंतिशार इंक़लाब आया न था पहले न अब इंक़लाब आने को है कहता है कौन