ये ग़म नहीं कि ग़म-ए-बंदगी मुक़द्दर है ग़म ख़ुदाई से कुछ कम है और कमतर है अकेला मैं भी हूँ तू भी अकेला है ऐ ख़ुदा न कोई सानी है तेरा न कोई हम-सर है ग़म-ए-हयात ग़म-ए-जानाँ और ग़म-ए-दौराँ ये काएनात का ग़म इन सभों से बढ़ कर है जो ग़म सिवा हो तो तू क्या करे है मेरे ख़ुदा यहाँ तो अश्क फ़शाँ मोमिन और काफ़र है बता कि तू भी ख़ुदा रखता है कोई अपना यहाँ तो है ये सुकूँ तू ख़ुदा-ए-बर्तर है