अजीब लड़की है वो कि उस को ख़ुदा बनाया तो वो ख़फ़ा है चहार जानिब इबादतों का हिसार खींचा मसाफ़तों के शजर उगाए हिरास की वुसअ'तों को मैं ने तिलिस्म-ए-सौत-ओ-सदा से बाँधा हवाओं को सम्त-ए-आगही दी शबों के ज़ख़्मी कबूतरों को लहू पिलाया फ़लक पे नीलाहटें बिखेरीं ख़ला में क़ौस-ए-क़ुज़ह के रंगीन पर उड़ाए निगाह-ओ-दिल की फ़सील पर जिस्म-ओ-जाँ सजाए बदन उगाए मगर वो लड़की ख़ुदाई पा कर भी मुज़्महिल है वो ख़ुश नहीं है वो कह रही थी कि तुम ने मुझ को ख़ुदा बनाया तो क्या ये समझूँ कि कोई मुझ से भी बाला-तर है