अजब था दश्त-ए-बला का मंज़र जहाँ नई नफ़रतों के ख़ंजर पुरानी रस्म-ए-वफ़ा के दिल में उतर गए थे जहाँ परायों की साज़िश-ए+बे-अमाँ के बाइ'स लहू के रिश्ते भी दुश्मन-ए-जाँ बने हुए थे जहाँ ज़मीं पर ख़रीफ़-ए-आतिश उगी हुई थी जहाँ फ़ज़ा में तुयूर-ए-आहन उभर रहे थे तुम्हारे अज़्म-ए-जवाँ ने अक्सर नए ख़यालों का नूर बख़्शा था आगही को कोई भी तारीख़ पा-ब-जौलाँ न कर सकी थी तुम्हारी आज़ाद-ओ-आसमाँ-गीर ज़िंदगी को शिकस्त हरगिज़ न दे सकी थी तुम्हारे जज़्बों तुम्हारे पिंदार-ए-बंदगी को मगर ये क्या इंक़लाब आया कि बिजलियों को भी तौक़ में हम असीर देखें तलातुमों के जिगर में पैवस्त तीर देखें सहर हो या शाम हर उफ़ुक़ पर तुम्हारे ख़ूँ की लकीर देखें मुझे गुमाँ है कि इस शिकस्त-ए-ज़ुबूँ के पीछे हमारा अपना भी हाथ होगा ये शाम-ए-ज़िंदाँ ये चुप फ़ज़ा ये उदास मौसम हर एक शय में ख़मोश तूफ़ाँ छुपा हुआ है तुम्हारे ज़ेहनों की टूटी-फूटी सी बैरकों में हज़ार-हा ख़्वाहिशों का मेला लगा हुआ है अभी हमारा ज़मीं से रिश्ता रहेगा क़ाएम पयाम इक दिन सुनेंगे तज्दीद-ए-ज़िंदगी का नए सहारे ख़ुलूस की बारिशें करेंगे चमन खिलेंगे तिलिस्म टूटेगा बेबसी का हमारी माएँ हमारी बहनें हमारे बच्चे लिपट के हम से करेंगे इज़हार अहद-ए-रफ़्ता की बेकली का मिटेगा दर्द-ए-फ़िराक़ उजड़ी सुहागनों का हर एक आँगन में दौर आएगा सरख़ुशी का मेरे वतन के ग़यूर बेटो तुम्हारी तक़दीर-ए-बे-गुनाही पे दम-ब-ख़ुद हैं तमाम क़ौमें ज़मीर-ए-इंसाँ तुम्हारे ग़म से किसी तरह बे-ख़बर नहीं है यक़ीन जानो तुम्हारे अय्याम-ए-इब्तिला ख़त्म हो चुके हैं यक़ीन जानो जहान-ए-ताज़ा में क़हत-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र नहीं है तुम्हारी मीआ'द-ए-आज़माइश का फ़ैसला मो'तबर नहीं है तुम्हारा सय्याद बे-बसर है ये दौर तो बे-बसर नहीं है