है कहाँ वो समाँ दर्द के नूर में धुल के निखरे हुए जिस्म-ओ-जाँ बे-हिसी की चटानें गिराती हुई राह संग-ए-ख़ार हटाती हुई कर्ब-ए-तख़्लीक़ की नद्दियाँ रूह के ज़ख़्म धोती हुई तुंद जज़्बात की बदलियाँ आबशार-ए-रवाँ वो मता-ए-गिराँ रोज़-ओ-शब की फ़रोमाया गर्दान में खो गई लज़्ज़त-ए-वस्ल की बेकली हिज्र-ए-बेताब की रौशनी मंज़िल-ए-बे-निशाँ की कसक अन-सुने गीत की नग़्मगी दश्त-ए-अय्याम के जाने किस मोड़ पर अजनबी रहगुज़ारों में गुम हो गई दिल गया दिल की वो बे-क़रारी गई क़ल्ब-ए-मजरूह की सोगवारी गई नाला-ए-शब गया बे-सबब अश्क-बारी गई जागने के जो आसार थे सो गए सुब्ह-ओ-शाम अजनबी हो गए ऐ ख़ुदा ऐ ख़ुदा अज़दहाम-ए-तिजारत में तू ही बता ख़्वाब आँखों में कैसे बसाएँगे हम कौन सी राह पर गर्म अश्कों के मोती बिछाएँगे हम आह किस आरज़ू के लिए सर-ए-मिज़्गाँ चराग़-ए-बसीरत जलाएँगे हम इश्क़ में किस तसव्वुर के अब जाँ से जाएँगे हम