कोई शिकारी बार बार बन में हमारे आए क्यों चौकेंगे हम हज़ार बार कोई हमें डराए क्यों घर नहीं झोंपड़ी नहीं कुटिया नहीं मकाँ नहीं बैठे हैं जंगलों में हम कोई हमें भगाए क्यों कान खड़े न क्यों करें घास में क्यों न हम छुपें खटका ज़रा भी हो अगर कोई ठिठुक न जाए क्यों बन में हमारे जो भी आए सैर मज़े से वो करे आए हज़ार बार ख़ुद कुत्तों को साथ लाए क्यों अम्मी से मार खा के भी ख़ुश कोई किस तरह रहे पानी मज़े से क्यों पिए घास मज़े से खाए क्यों कहता था इक शिकारी ये आएँगे हम ज़रूर याँ जिस को हो अपनी जाँ अज़ीज़ बन में वो घर बनाए क्यों चिड़ियाँ न चहचहाएँ कल सोएँ हम दोपहर तक बंद है बन का मदरसा कोई हमें जगाए क्यों