अकड़ शाह ने दोस्तों से कहा मुझे तो ज़ेहानत हुई है अता कहा दोस्तों ने अकड़ शाह से वो फँसता है अक्सर अकड़ हो जिसे अकड़ कर अकड़ शाह कहने लगा अकड़ मेरे अंदर नहीं है ज़रा मैं क्यों ख़ुद को बे-अक़्ल-ओ-मजनूँ कहूँ तवाज़ो' की ख़ातिर ग़लत क्यों कहूँ तबस्सुम छुपा कर कहा दोस्त ने अगर तू कहे आज़माएँ तुझे ज़हीं है तो दे हम को तू बारह सौ समझदार गर है तो दे ग्यारह सौ अकड़ शाह बोला न मानूँगा हार मिरे पास कल आना ऐ मेरे यार मैं तेईस देने को तय्यार हूँ कि मैं तो ज़हीन और समझदार हूँ कहा दोस्त ने ऐ ज़हीं चल बता बनी मुर्ग़ी पहले कि अण्डा बना अकड़ शाह पहले हँसा फिर कहा जवाब उस का बिल्कुल है आसान सा मुझे पहले मुर्ग़ा बनाया गया वरक़ पर फिर अण्डा बनाया गया फिर इक दिन उसी दोस्त से जब मिला तो वो दोस्त उस से ये कहने लगा बहुत ही बड़े हो गए बाल अब हजामत कराओगे तुम अपनी कब बुलाया तुम्हें गोया हज्जाम ने दुकान उस की देखो वो है सामने मगर टुंड बिल्कुल न करवाना तुम कि हो जाती है ठण्ड में सिट्टी गुम अकड़ शाह हजामत कराने चला कि ये मशवरा उस को अच्छा लगा जब अगले दिन उस दोस्त से वो मिला उसे पा के गंजा वो हैराँ हुआ कहा दोस्त ने भाई ये क्या किया ये किस ने तुझे पूरा गंजा किया बताया अकड़ शाह ने हँसते हुए कि हज्जाम के पास खुल्ले न थे दिए मैं ने हज्जाम को सौ रूपए कटे थे मिरे बाल बस तीस के कहा मैं इस से न घबरा ज़रा तू सत्तर का अब फेर ले उस्तुरा 'उसामा' से क़िस्से अकड़ शाह के न जाओगे सुन कर बिना वाह के