ये चिड़ियाँ चहचहाती हैं तो उन को चहचहाने दो परिंदों को दरख़्तों पर ख़ुशी के गीत गाने दो ज़मीं पर अब्र की हर बूँद को नग़्मे सुनाने दो फ़लक पर लैली-ए-क़ौस-ए-कुज़ह को मुस्कुराने दो मिरा दिल सर्द है मुझ को यूँही बेहोश रहने दो मुझे ख़ामोश रहने दो फ़ज़ा-ए-दहर लबरेज़-ए-मसर्रत है तो मुझ को क्या अगर दुनिया ख़राब-ए-ऐश-ओ-इशरत है तो मुझ को क्या जो मा'मूर-ए-सदा साज़-ए-मोहब्बत है तो मुझ को क्या जहाँ को मेरे नग़्मों की ज़रूरत है तो मुझ को क्या मुझे अपने ख़यालों ही से हम आग़ोश रहने दो मुझे ख़ामोश रहने दो मुझे फ़ुर्सत नहीं है फ़र्त-ए-ग़म से सर उठाने की गराँ है मेरे दिल पर शोरिश-ओ-काविश ज़माने की अभी कड़ियाँ मुरत्तब हो रही हैं इक फ़साने की अभी साअ'त कहाँ है दास्तान-ए-दिल सुनाने की किसी की याद में मुझ को तसव्वुर-कोश रहने दो मुझे ख़ामोश रहने दो जो मैं बोला तो सब को अपने अश्कों में भिगो दूँगा दिल-ए-इंसाँ में ग़म के सैंकड़ों काँटे चुभो दूँगा जो मैं बोला तो गोयाई ज़माने-भर की खो दूँगा जो मैं बोला तो दुनिया को ख़मोशी में डुबो दूँगा यही बेहतर है ख़ल्वत में मुझे ख़ामोश रहने दो मुझे ख़ामोश रहने दो