बर्फ़ जमी है ज़ेहनों पर दिल में आग के शो'ले हैं मेरे शहर के दीवाने यार बड़े जोशीले हैं सारी वहशत वीरानी दर आई है शहर-ए-दिल में हू का आलम तारी है गाँव में और क़स्बों में शोख़ी दो-शीज़ाओं की बच्चे बच्चे की ख़ुशियाँ माँ की शफ़क़त बाप का प्यार ले गया जाने कौन उधार घर घर आतिश-बाज़ी है तांडव नाच जो जारी है फूल खिले हैं बारूदी अंगारों का मौसम है जश्न-ए-बहाराँ कैसा है आँख कली की पुर-नम है मैं भी रोना चाहूँ पर ख़ून नहीं है आँखों में पानी रोते रोते तो सदियाँ मुझ को बीत गईं