फ़िक्र-ए-इंसाँ पर तिरी हस्ती से ये रौशन हुआ है पर-ए-मुर्ग़-ए-तख़य्युल की रसाई ता-कुजा था सरापा रूह तू बज़्म-ए-सुख़न पैकर तिरा ज़ेब-ए-महफ़िल भी रहा महफ़िल से पिन्हाँ भी रहा दीद तेरी आँख को उस हुस्न की मंज़ूर है बन के सोज़-ए-ज़िंदगी हर शय में जो मस्तूर है महफ़िल-ए-हस्ती तिरी बरबत से है सरमाया-दार जिस तरह नद्दी के नग़्मों से सुकूत-ए-कोहसार तेरे फ़िरदौस-ए-तख़य्युल से है क़ुदरत की बहार तेरी किश्त-ए-फ़िक्र से उगते हैं आलम सब्ज़ा-वार ज़िंदगी मुज़्मर है तेरी शोख़ी-ए-तहरीर में ताब-ए-गोयाई से जुम्बिश है लब-ए-तस्वीर में नुत्क़ को सौ नाज़ हैं तेरे लब-ए-एजाज़ पर महव-ए-हैरत है सुरय्या रिफ़अत-ए-परवाज़ पर शाहिद-ए-मज़्मूँ तसद्दुक़ है तिरे अंदाज़ पर ख़ंदा-ज़न है ग़ुंचा-ए-दिल्ली गुल-ए-शीराज़ पर आह तू उजड़ी हुई दिल्ली में आरामीदा है गुलशन-ए-वीमर में तेरा हम-नवा ख़्वाबीदा है लुत्फ़-ए-गोयाई में तेरी हम-सरी मुमकिन नहीं हो तख़य्युल का न जब तक फ़िक्र-ए-कामिल हम-नशीं हाए अब क्या हो गई हिन्दोस्ताँ की सर-ज़मीं आह ऐ नज़्ज़ारा-आमोज़-ए-निगाह-ए-नुक्ता-बीं गेसू-ए-उर्दू अभी मिन्नत-पज़ीर-ए-शाना है शम्अ ये सौदाई-ए-दिल-सोज़ी-ए-परवाना है ऐ जहानाबाद ऐ गहवारा-ए-इल्म-ओ-हुनर हैं सरापा नाला-ए-ख़ामोश तेरे बाम दर ज़र्रे ज़र्रे में तिरे ख़्वाबीदा हैं शम्स ओ क़मर यूँ तो पोशीदा हैं तेरी ख़ाक में लाखों गुहर दफ़्न तुझ में कोई फ़ख़्र-ए-रोज़गार ऐसा भी है तुझ में पिन्हाँ कोई मोती आबदार ऐसा भी है