मुद्दतों बाद तुम इस तरह मिली हो मुझ से जैसे हम में न कोई प्यार का रिश्ता था कभी अजनबी बन के मिरे सामने यूँ बैठोगी हाए दिल ने मिरे ऐसा तो न सोचा था कभी तेरे पिचके हुए रुख़्सार ये वीराँ आँखें होंट-ए-पज़मुर्दा कहें सारी कहानी तेरी एक भँवरे ने तिरे हुस्न का रस चूस लिया इक सितम-केश ने लूटी है जवानी तेरी झिड़कियाँ सुन के भी तू पाँव दबाए उस के अपने शौहर की भी अब कितनी वफ़ादार है तू उस के बच्चों को जनम देने की पाबंद है तू उस के बिस्तर पे घड़ी एक की महकार है तू