अलमिया

ज़िंदगी तदबीर-ए-दरमाँ के सिवा कुछ भी नहीं
एक पैहम काविश-ए-जाँ के सिवा कुछ भी नहीं

अपने बस में रौशनी है अपने बस में तीरगी
ज़िंदगी ख़ुद सई-ए-इंसाँ के सिवा कुछ भी नहीं

अक़्ल लर्ज़ां हर क़दम पर अपनी नादारी से है
जज़्बा-ए-दिल शोरिश-ए-जाँ के सिवा कुछ भी नहीं

इल्म-ओ-इरफ़ाँ की हम-आहंगी सुबूर-ए-दिल से है
अक़्ल-ओ-दानिश नूर-ए-इरफ़ाँ के सिवा कुछ भी नहीं

अपनी उलझन का तसलसुल अपनी काविश का मआल
अलमिया ख़ुद सई-ए-इंसाँ के सिवा कुछ भी नहीं

नूर-ए-इरफ़ाँ अपना हासिल अपना हासिल तीरगी
ये गुरेज़-ए-ज़िंदगी है वो जिहाद-ए-ज़िंदगी

रंज-ओ-राहत की कशाकश से वरा है ज़िंदगी
इज्तिहाद-ए-इल्म-ओ-फ़न से मा-सिवा है ज़िंदगी

एक अन-देखा बहाओ एक अन-थक सिलसिला
ज़िंदगी के तजरबे से मावरा है ज़िंदगी

एक हिज्र-ए-बे-अमाँ है एक कोह-ए-आतिशीं
सोज़-ए-जाँ है क्या शुऊ'र-ए-ज़ीस्त क्या ना-आगही

इक जिहाद-ए-मुस्तक़िल हो या गुरेज़-ए-मुस्तक़िल
अपनी नादारी के हाथों आदमी है मुन्फ़इल

बारहा दश्त-ए-जुनूँ को पाट कर भी ऐ 'कलीम'
ज़िंदगी को हम ने पाया मौत ही से मुत्तसिल

अलमिया ख़ुद सई-ए-इंसाँ के सिवा कुछ भी नहीं
इक हिजाब-ए-इल्म-ओ-इरफ़ाँ के सिवा कुछ भी नहीं

इक गुरेज़-ए-पुर-ख़जालत के सिवा कुछ भी नहीं
इक जिहाद-ए-पुर-शक़ावत के सिवा कुछ भी नहीं


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