बे-यक़ीनी के ज़ीने पे चलते हुए उस ने बाहर क़दम जो निकाला तो कैफ़े की दीवार से देखती मोनालीज़ा के चेहरे पे सदियों से फैला तबस्सुम भी इक पल को गहना गया टीना सानी की आवाज़ के साए में उस के होंटों की जुम्बिश सराबों सी महसूस होने लगी उस की आँखों पे छाई हुई धुंद चारों दिशाओं में उड़ने लगी बे-यक़ीनी का ज़ीना क़दम-ब-क़दम उस के पैरों के हमराह बढ़ने लगा आह खींची और उस ने दो-आलम की सारी उदासी को अपने बदन में समेटा तो सोचा कि कोहरा उदासी का हम-ज़ाद है यक-ब-यक ज़ब्त की आमरिय्यत के बाग़ी किसी ख़्वाब ने उस की पलकों के ज़िंदाँ से कूद कर ख़ुद-कुशी की तो मफ़रूर आँसू क़तारें बना कर निकलने लगे गोल-चक्कर पे रौशन किसी क़ुमक़ुमे के उजाले में गेंदे के फूलों ने जब उस के गालों पे गिरती हुई ओस देखी तो मुरझा गए सुरमई घास ने साल की आख़िरी शाम में आज पहली दफ़ा उस को ख़ामोश देखा तो नम हो गई चारों जानिब उतरती हुई धुंद ने ख़ुद को कुछ और बोझल किया उस को लोगों की नज़रों से ओझल किया और वो लड़की कहीं खो गई