मैं साल-हा-साल से एक छोटी सी पोशीदा आरज़ू का अमीन हूँ मेरा एक मुख़्तसर सा ख़ूबसूरत लकड़ी का मकान आँगन में दाना चुगती हुई मुर्ग़ियाँ कुछ पालतू जानवर गाएँ भैंसें बकरियाँ और चारों-सम्त सब्ज़ रंग में लिपटे हुए खेत ही खेत मीठे पानी से लबरेज़ गहरे कुएँ और उन्हीं खेतों के दरमियान से हो कर गुज़रती हुई एक कहकशाँ जैसी पगडंडी सर-निगूँ दरख़्तों के आदाब क़ुबूल करती हुई लेकिन नहीं कुछ भी नहीं मैं तो अभी तक इस छोटी सी पोशीदा आरज़ू का अमीन हूँ