जब अम्मी अब्बू छोटे थे क्या हम जैसे ही होते थे दिन रात शरारत करते थे अपने अब्बू से डरते थे जब ज़िद करना होती थी उन्हें अपनी अम्मी से करते थे क्या अदब बड़ों का करते थे जो कहते थे वो करते थे पढ़ने मुश्किल से जाते थे क्या रोते-धोते आते थे मुँह हाथ वो धो कर खाते थे या बिन धोए सो जाते थे वो शाम को देर से उठते थे क्या काम इस्कूल का करते थे कुछ पढ़ते थे कुछ लड़ते थे आँसू से मुँह वो धोते थे क्या वो भी अपनी दादी से हर रात कहानी सुनते थे क्या वो भी अपने दादा से वो बातें पुरानी सुनते थे वो प्यारे नबियों के क़िस्से मालूम नहीं भी होते थे वो सारी दुआएँ उन को भी क्या याद ज़बानी होती थीं क्या अपनी नमाज़ों की पाबंदी वो हम जैसी ही करते थे जब अम्मी अब्बू छोटे थे क्या हम जैसे ही होते थे