ये किस ने आलम-ए-हस्ती किया तह-ओ-बाला शराब-ए-ज़ीस्त को साग़र में मौत के ढाला ये किस ने ज़ीस्त के दामन को तार तार किया ज़मीर-ए-वक़्त में पैदा इक इंतिशार किया ये किस ने दौलत-ए-अम्न-ओ-अमाँ को लूट लिया कि बन के राह-नुमा कारवाँ को लूट लिया ये किस ने बादा-ए-हस्ती में ज़हर घोला है फ़साद-ओ-क़हर-ओ-तबाही का बाब खोला है ये किस ने अक़्ल को ईजाद का सिला बख़्शा हरीफ़-ए-मूसा-ए-इमराँ को भी असा बख़्शा बनाया क़ैसर-ओ-नय्यर को हुक्मराँ किस ने चमन के वास्ते ख़ुद मोल ली ख़िज़ाँ किस ने ये किस ने ज़ुल्म के बंदों को तेग़-ए-कीं दे दी फ़लक के मश्क़-ए-सितम के लिए ज़मीं दे दी ख़िरद को राज़-ए-दरूँ का सुराग़ किस ने दिया शरीर बच्चे को आख़िर चराग़ किस ने दिया बहार से न कहीं ज़ीनत-ए-चमन जाए ज़मीं तमाम ये हीरोशीमा न बन जाए