मादर-ए-हिन्द ज़माने में तू आबाद रहे हम बला से हों गिरफ़्तार तू आबाद रहे हम पे सौ आफ़तें नाज़िल हों मसाइब आएँ तू मगर ख़ुश रहे ख़ुर्रम रहे दिल-शाद रहे तेरी ख़िदमत के लिए जब से कमर-बस्ता हैं किस को परवाह कि आबाद या बर्बाद रहे किस क़दर हम पे जफ़ा-गर ने जफ़ाएँ तोड़ीं तख़्ता-ए-मश्क़-ए-सितम मौरिद-ए-बे-दाद रहे हम वफ़ा के हैं वो बंदे कि कभी आह न की दिल को रोके हुए थामे हुए फ़रियाद रहे हम ने पीछे न हटाया कभी मैदाँ से क़दम तेग़ खींचे हुए गो सामने जल्लाद रहे मुल्क-ओ-मिल्लत की तरफ़-दारी से मुँह कब मोड़ा गरचे आमादा सितम पर सितम-ईजाद रहे शौक़-ए-परवाज़ न आज़ाद-ख़यालों का गया दाम डाले हुए हर-चंद कि सय्याद रहे ख़ून से कर गए सैराब चमन को 'साबिर' क्यूँ न भारत को शहीदों की सदा याद रहे