अंधा भिकारी By Nazm << एक पौदा और घास एक ख़्वाब >> कितने सूरज डूबे कितने मौसम बीते साँसें जोड़ें धागे की सूरत में आँखें फोड़ें इक झोली को सीते सीते तेरी गली में आया तेरा घर ऊँचा था तू ने भी मेरी झोली में इक खोटा सिक्का फेंका था Share on: