साथी हाथ पे हाथ धरे हो कौन सा सपना देख रहे हो कौन सी आशाएँ हैं जिन से मन ही मन में खेल रहे हो यास की गहरी तारीकी में रह-रह कर पलकों से अपनी कैसे आँसू पोंछ रहे हो धुँदली धुँदली ये नज़रें हैं मन के तार भी काँप रहे हैं साथी हाथ पे हाथ धरे हो ग़म के बादल छट न सकेंगे रात अँधेरी यूँही रहेगी पाप के दिन भी कट न सकेंगे हाइल हैं ये संग-ए-गिराँ जो राह से ये भी हट न सकेंगे अपने ग़म में ऐसा खोए टूट गया दुनिया से नाता दुनिया में दुख वाले भी हैं दुख वालों को समझा होता कब सूरज निकले कब चमके हो जाए हर-सू उजयारा जाग उठे संसार हमारा ये भी तुम ने सोचा होता कोई नहीं अंधेर-नगर में दीप जलाए मन मंदिर में