एक ग़मगीन याद By Nazm << फ़राज़-ए-अर्श से आगे अंधेर-नगर में >> ये गलियाँ आज वीराँ पड़ी हैं इन्हीं गलियों में 'अंजुम' खो गया था किसी के पाँव पर सर रख के अक्सर मोहब्बत के ग़मों को धो गया था Share on: