अंजान By Nazm << नज़्म आओ हम रक़्स करें >> अपनी ज़ात में रहने वाली अपने लिए ही अनजानी में कोई अक्स मुकम्मल है जो मेरी रूह ख़ला में अक्सर मुझ को आवाज़ें देता है मेरे जिस्म में जैसे आग भरी है Share on: