गुम हुए यूँ कि कभी मेरे शनासा ही न थे कुछ लिखा होता तुम्हें मुझ से शिकायत क्या है ख़बर कब आए हो कैसे सुनाओ प्यारे क्या ख़बर लाए हो यारों की हिकायत क्या है उस ने ये कुछ न कहा और कहा तो इतना खेल दिल-चस्प है नज़्ज़ारे करो और फिर एक ख़ला एक गिराँ-बार ख़मोशी की अज़िय्यत ले कर मैं ये कहता हुआ उठ आया कि हाँ खेल है दिलचस्प बहुत