रौशनी के खम्बे के नीचे मैं ने अपने सर को अपने क़दमों में उलझते देखा सिर्फ़ अंधेरे ही आदमी को परेशान नहीं करते तेज़ रौशनी के नीचे भी अगर आदमी साकित खड़ा रहे तो उस का सर उस की टाँगों की सलाख़ों से आज़ाद नहीं हो सकता मैं ने एक क़दम बढ़ाया मेरा सर पैरों की क़ैद से छुट गया मैं क़दम उठाता रहा मेरा क़द बढ़ता रहा