ज़र्द पानी में डुबो कर मैं भी गर्दन की रगें सिगरटों के अध-जले टुकड़ों से खेला हूँ मैं बहुत जान-दारों की हलाकत और उन के जिस्म पे मिर्चों की तह फेफड़ों के गिर्द इक काली लकीर मुझ को आने वाले वक़्तों की गवाही दे गई अक़्ल और दौलत के जितने भी ख़ज़ाने पास थे दोस्तों की मेहरबानी खा गई