ये धतूरा है काँटों भरा और वो उस का है हम-सफ़र ज़िंदगी का अंतिम सफ़र नीचे काँटों का बिस्तर और ऊपर से किरनों के नेज़े या वो गर्दिश करे या वो करवट ही बदले अज़ल से वो ज़ख़्मों से है चूर-चूर जाने कितने सहे उस ने दुख अपने लम्बे सफ़र में कितने आँसू बहाए हैं उस ने ख़ून के सात सागर बने हैं कौन अंदाज़ा कर सकता है उस के दुख का