कभी कभी ये सोचती हूँ आख़िर मैं टीचर क्यों हूँ कुछ और न कर सकी क्या इस लिए मैं टीचर हूँ जवाब यही बस आता है सब कुछ कर सकती हूँ शायद इसी लिए मैं टीचर हूँ नन्हे-मुन्ने बच्चों में मैं अपना बचपन देखती हूँ किसी में 'सर-सय्यद' किसी में 'कलाम' देखती हूँ कभी कभी ये सोचती हूँ कि मुझे सिर्फ़ किताबों के निसाब ही पढ़ाने हैं या कि उन के ज़ह्न की कोरी तख़्ती पर कुछ और लिखना है बच्चे तो कच्ची मिट्टी के लोन्दे हैं उन्हें मुझे ही सँवारना सजाना है और इंसानियत के साँचे में ढाल कर एक बेहतर इंसान बनाना है अगर मैं ये सब कुछ कर सकी तो कामयाब है मेरा मक़्सद मेरा काम से मोहब्बत ख़ुदा की ख़ास रहमत कभी कभी सोचती हूँ मुझे ही तो बनानी है इन नौनिहालों की शख़्सियत जो आज कमज़ोर पौदे हैं कल साया-दार दरख़्त होंगे यही क़ौम-ओ-मिल्लत के बख़्त होंगे शायद इसी लिए मैं टीचर हूँ