तुम ने सोचा मद्धम लफ़्ज़ों की दस्तक से दर खुलते हैं रौशन और आबाद ज़बानों की जानिब तुम ने सोचा तहज़ीबों के जुर्म बताने से इंसान बुरा होता है तुम ने समझा सच कह देना काफ़ी है हर झूट के आगे लेकिन सच कह देने से भी क्या बदलेगा वक़्त ज़माना तहज़ीबें ले आएँगी इक झूट नया और सच को पुराना फैशन जान के लोग भुला देंगे तुम को यूँ लगता है खुल जाएगी तेज़ हवा से सिलवट उन मौजों की जिन को रेत के टीलों ने तरतीब दिया है साहिल पर यूँ लगता है रेज़ा-रेज़ा किरन किरन बिखरेगा सूरज रंगों की बरसात है उजले पानी में यूँ लगता है गूँज उठेगा नग़्मा कोई रुक जाएँगे बहते बहते सब यक-दार रवानी में