तेरी बातों में तिरा फ़न तेरे फ़न में तेरी बात क्यूँ हो तेरे बाब में फिर काविश-ए-ज़ात-ओ-सिफ़ात पहूँची ग़म की रूह तक जिन की न कोई एक बात इश्क़ में झेले हैं तू ने ऐसे भी कुछ सानेहात ज़िंदगी को ज़िंदगी करना कोई आसाँ न था हज़्म कर के ज़हर को तू ने किया आब-ए-हयात है कहाँ एहसास की ऐसी रियाज़त का जवाब होती है गर्म-ए-तकल्लुम तुझ से बेहिस काएनात राज़ के सीग़े में रक्खा था मशिय्यत ने जिन्हें वो हक़ाएक़ बन चुके हैं तेरे दिल की वारदात तेरी बातें सुन के आँखों में नमी सी आए है तेरी महफ़िल है बुलंद-अज़-दहरियात-ओ-दीनयात सिर्फ़ उसी की तर्जुमानी है तिरे अशआ'र में जिस सुकूत-ए-राज़-ए-रंगीं को कहें जान-ए-हयात तेरी बातें हैं कि नग़्मे तेरे नग़्मे हैं कि सेहर ज़ेब देते हैं भला औरों को कब ये कुफ्रि़यात तू ने जिस आवाज़ को पाला है मर मर कर 'फ़िराक़' आज उसी की नर्म लौ है शम-ए-मेहराब-ए-हयात