आख़िरी दिन का डूबता सूरज तेरी चौखट पे सज्दा-रेज़ अपनी किरनों के ख़ाली कश्कोल उलट कर थकी हुई यख़-बस्ता निगाहों से मेरी दुनिया की तारीक राहदारियों में गुज़रे हुए पल की किसी पुर-अफ़्शाँ साअ'त की तलाश में है मगर ता-हद-निगाह फैली हुई मख़्लूक़ ख़ालिक़-ए-लम-यज़ल से उम्मीद-ए-नौ के कासे फैलाए अपनी पलकों की मुंडेरों पे शफ़क़-रंग लिए नए उजालों नए सूरज की तलबगार बनी है बुझती हुई सर्द शाम के तन्हा सूरज ऐ पीर-ए-फ़लक पैकर-ए-कोहना सूरज अलविदा'अ अलविदा'अ अलविदा'अ