शम्अ' बुझानी थी तो जलाया क्यों था यूँ बे-रुख़ी से मुँह मोड़ना था तो अंजुमन में बिठाया ही क्यों था वो देखो फ़लक पे चाँद कैसा उदास दिख रहा है देखो ज़रा देखो तो उस की आँखें कैसी डबडबा आई हैं चाँद से मेरा क्या रिश्ता है सिर्फ़ इतना ही न कि हर रात मैं उसे एक बार देखता था और उसे देख कर हाथ हिला दिया करता था चाँद कहीं भी होता था बादलों की ओट में किसी बड़े दरख़्त के सब्ज़ पत्तों के पीछे या ऊँची इमारतों के छज्जों के पीछे वो दौड़ कर बाहर निकल आता था शफ़क़त से लबरेज़ मुस्कान बिखेर देता था और मैं मैं उसे देख कर हाथ हिला दिया करता था तुम से तो बेहतर है वो चाँद जो मुझे तन्हा देख कर उदास हो उठा और तुम तुम ने तरस भी नहीं खाया शम्अ' बुझाने में शम्अ' बुझानी थी तो जलाया क्यों था यूँ बे-रुख़ी से मुँह मोड़ना था तो अंजुमन में बिठाया ही क्यों था