समुंदर प्यास कैसे बुझाए कि वो तिश्नगी का दूसरा लफ़्ज़ ठहरा इसी लिए समुंदर ने किसी की प्यास अब तक बुझाने का दावा नहीं किया है मगर वो ज़ात में अपनी बड़ा है बहुत पुर-आब है पर ये सच है हक़ीक़त में वो बे-मा'नी बहुत है ब-ज़ाहिर बे-कराँ मौजों को अपनी गोद में ले कर रवाँ है बे-क़रारी से मगर कहता नहीं है दर्द अपना सदा इन शोख़ मौजों का हमदम है इन का हम-क़दम इन का निगहबाँ वो ख़ुद डरा सहमा हुआ है समुंदर का जनम शायद नहीं है कि वो सैराब कर दे तिश्नगाँ को है इस के मिस्ल औरत की फ़ितरत समुंदर और औरत की कहानी है इक जैसी ज़माने में अज़ल से हज़ारों ग़म को पी लेती है औरत मगर शिकवा नहीं करती इसी लिए तो समुंदर और औरत नज़र आते हैं बिल्कुल एक जैसे सितम सहती है वो ज़रयाब अक्सर मगर कहती नहीं कुछ भी ज़बाँ से है यही औरत की ख़सलत यही है इस की अज़्मत