हम गंदुम पर इक्तिफ़ा कर लेते लेकिन हमारे सामने कच्ची रोटी की महक रखी गई और फिर रोज़े तोड़ने पड़े हम एक गुनाह पर राज़ी थे लेकिन उन में मामता कूट कूट कर भरी हुई थी सो हमें सारे सवाब खोने पड़े हम अपनी ज़मीनों पर मुतमइन होने को थे कि जंगल में लक़ड़हारे से मुलाक़ात हो गई और अचानक बरसात हमें चार के मा'नी मालूम भी न हो पाते अगर हम कभी एक से सैर न हुए होते और इस अमल को ज़र्ब-ए-मुसलसल से न गुज़ारा जाता हमें हर कुएँ में ख़ुद-कुशी का शौक़ भी न होता अगर वो हमारी रात से ज़्यादा गहरे न हो सकते और पानी मज़ीद सस्ता हम उन के पैरों तलक रहते अगर दिल का रास्ता नाफ़ से हो कर न जाता और दिमाग़ वो तकियों पे न धर आतीं हमें सुर्ख़ रंग की आदत डाली गई जिस से उन पर लगने वाले सारे धब्बे हमारे कहलाए और शराब के मा'नी बदलते रहे हमें आग से खेलते हुए एक रात भी न मुकम्मल हुई कि ए'लान हुआ अपनी मर्ज़ी से खेलने पर हाविया हमेशा के लिए तुम्हारी हुई