वक़्त का तुम पर क्या असर कि तुम्हारी आँखें सामरी का कटोरा हैं जिन में पेश आने वाले वाक़िआ'त उबल पड़ें ज़ह्न की चादरें तुम्हारे मूड से बदली जाती हैं निय्यत का मौसम यक-दम मोनाल की रात बन जाता है सिर्फ़ जब तुम्हारी बात का बल्ब जले बे-लिबास न फिरो कि रेत का रंग तुम से जलने लगे लिबास पहनो कि छतरियों की क़ौस-ए-क़ुज़ह से धूप मुस्कुरा उठे बारिश बने रहना कि दरख़्त तुम से पर्दे की ज़हमत न करें अपने बाल मत सँवारना जंगलों में रात काटना किसी को बहुत पसंद है