सारे दिन की थकी, वीरान और बे-मसरफ़ रात को एक अजीब मश्ग़ला हाथ आ गया है अब वो! सारे शहर की आवारा परछाइयों को जिस्म देने की कोशिश में मसरूफ़ है मुझे मालूम है अगर गुम-नाम परछाइयों को उन की पहचान मिल गई तो शहर के मुअज़्ज़ज़ और इबादत-गुज़ार शरीफ़-ज़ादे हम-शक्ल परछाइयों के ख़ौफ़ से परछाइयों में तब्दील हो जाएँगे और बे-मसरफ़ दिन भर की थकी हुई रात को एक और मश्ग़ला मिल जाएगा