ये गो-धूल बेला फ़ज़ा जैसे घर लौटती गाय भैंसों का रेवड़ बहुत नीम-जाँ ये सरसब्ज़ शाख़ें जो दिन भर किसी फूल का ताज पहने हुए रक़्स करती रहीं थक चुकी हैं अभी जैसे सरगोशियाँ कर रही हैं सियाही का चढ़ता समुंदर अगर शब गए तक न उतरा तो क्या है मिरी गोद में ग़ुंचा-ए-गुल हँसेगा उधर पौ फटेगी