तज्ज़िया By Nazm << ये सफ़र ख़त्म न हो अज़्म >> अपने माज़ी का आईना ले कर जाने कब से उदास बैठा हूँ इन दिनों कोई मुद्दआ' भी नहीं इन दिनों मैं ने कुछ लिखा भी नहीं इन दिनों ज़ेहन सोचता भी नहीं इन दिनों दिल में इक ख़याल सा है अपने होने का कुछ मलाल सा है Share on: