ऐ कि तेरी ज़ात थी सरमाया-ए-इल्म-ओ-अमल ऐ कि तेरा हर इरादा था निहायत ही अटल ऐ कि तू इक जौहर-ए-तेग़-ए-दिल-ए-इस्लाम थी तेरी हस्ती यादगार-ए-रौनक़-ए-अय्याम थी तेरे सीने में भरा था बहर-ए-इस्लामी का जोश तेरे आ'ज़ा में रवाँ था एक दरिया-ए-ख़रोश तेरी रग रग में वफ़ूर-ए-जोशिश-ए-सैलाब था तेरा हर जज़्बा ज़िया-ए-गौहर-ए-नायाब था तेरी हस्ती शम्अ-ए-हिम्मत के लिए आईना थी ज़िंदगी तेरी चराग़-ए-मिल्लत-ए-देरीना थी तू ने मुर्दा ज़िंदगी में रूह ताज़ा फूँक दी हिम्मत-ए-मजबूर को बख़्शी है तू ने ज़िंदगी एक शुआ'-ए-नय्यर-ए-आसूदा-ए-रिफ़अत थी तू इस ख़िज़ान-ए-ज़ीस्त में इक मादर-ए-मिल्लत थी तू तू ने रम्ज़-ए-क़ल्ब-ए-मख़्फ़ी आश्कारा कर दिए मा'नी-ए-इल्म-ओ-अमल पर्दा से बे-पर्दा किए मुद्दआ-ए-दिल तिरा इक गौहर-ए-उम्मीद है जो फ़ज़ा-ए-तार में इक शोला-ए-ख़ुर्शीद है तेरा हर लम्हा मुनव्वर हर घड़ी नय्यर-ब-दोश ज़िंदगी तेरी रहे मिस्ल-ए-चराग़-ए-ज़ौ-फ़रोश ज़ुल्मत-ए-मिल्लत में चमकाए मुनव्वर आफ़्ताब गुलशन-ए-उम्मीद में महका दिए रंगीं गुलाब इम्तिहान-ए-ज़ीस्त में तू किस क़दर ही कामयाब हर वरक़ तेरी किताब-ए-उम्र का है ख़ुद किताब आ सुकूत-ए-यास में मुझ को बना ले राज़-दार आ रह-ए-उम्मीद में मुझ को बना ले कामगार आ मिरे कानों में भी वो रूह-ए-पिन्हाँ फूँक दे ज़िंदगी मेरी भी इक माज़ी का आईना बने आ 'जमाल'-ए-ज़ार को भी राज़दार-ए-दिल बना ज़िंदगी इस की भी इक बर्क़-ए-दिल-ए-बिस्मिल बना