रेल की आहनी पहियों में इक जुम्बिश हुई धीरे धीरे बढ़ी रफ़्तार उस की पहले दर्जे के एक डब्बे में एक तन्हा मुसाफ़िर मुड़ मुड़ कर ये किस को देखता था हिला कर हाथ उस से कह रहा था अलविदा'अ रुख़्सत और वो नन्ही सी इक मासूम बच्ची अपनी माँ का हाथ मज़बूती से थामे रेल की बढ़ती हुई रफ़्तार को नीचा दिखाने दौड़ने लगती है तेज़ी से और रुँधी हुई आवाज़ में ये कहती जाती है ख़ुदा हाफ़िज़ मिरे बाबा ख़ुदा हाफ़िज़ आदाब मिरे बाबा आदाब तेज़ रफ़्तारी से गाड़ी हो गई नज़रों से ओझल और माँ के पैरों से लिपट कर रोते रोते कहा बच्ची ने अम्मी जैसे बाबा जान हम को छोड़ कर तन्हा गए हैं दूर हम सब से ये वा'दा कीजिए अम्मी कि मुझ को छोड़ कर बिल्कुल अकेली कभी मत जाइएगा कभी मत जाइएगा मेरी अम्मी मेरी अम्मी