बाबा मैं बहुत रोई थी मुझ सात बरस की ना-समझ बच्ची को कुत्ते और इंसान के फ़र्क़ का क्या पता था मैं तो अपनी कॉपी पर मोहब्बत के क़लम से इंसान की तस्वीर बनाती थी और कुत्ते की तस्वीर बनाते बनाते नफ़रत ख़ुद-बख़ुद दिल में उमँड आती थी लेकिन आज जब में घर से स्कूल की तरफ़ निकल पड़ी तो रास्ते पर कुत्ते और इंसान का सामना हुआ कुत्ते को देख कर मैं तो डर ही गई और इंसान की तरफ़ भागी लेकिन मुझे तब एहसास हुआ कि जिस कुत्ते से मैं नफ़रत करती थी उस की आँखों में मेरे लिए मोहब्बत उभर आई है क्यूँकि दरिंदे ने जब मुझे घसीट कर झाड़ियों के पीछे अपनी नफ़रत का निवाला बना लिया और मेरे गुलाबी जिस्म को अपने ज़हरीले पंजों से रेज़ा रेज़ा करने लगा ज़हरीली ख़राश जूँही गुलाबी जिस्म को पारा पारा करती हुई जिगर को चीर गई तो आख़िरी हिचकी के साथ ही बाबा मुझे महसूस हुआ कि इंसान की हैवानियत देख कर वो बे-ज़बान कुत्ता भी रोते रोते इंसानियत का मातम मना रहा है