उस ने जब पहला हमला किया तो मैं चुप रहा क्यूँकि मैं महफ़ूज़ था उस ने जब दूसरा हमला किया तौ मैं थोड़ा सा सोचने लगा लेकिन चुप रहा क्यूँकि मैं महफ़ूज़ था फिर मेरी ख़ुद-ग़र्ज़ी ने मुझे बे हिस कर दिया वो लगातार हमला करता रहा और मैं लगातार ख़ुद को महफ़ूज़ समझ कर चुप रहा न सिर्फ़ चुप रहा बल्कि हमेशा अपने ही लोगों को जज़्बाती और बे-सब्र कहता रहा मगर अब जबकि मेरी ख़ुद-साख़्ता सोच के साथ साथ मेरी गर्दन भी अपनी मर्ज़ी से हिल नहीं सकती है तो मेरा ज़मीर बार-बार कोस रहा है कि तू न अब अपनों का रहा न ग़ैरों का क्यूँकि तू अपनों की ख़ूबियों को नज़र-अंदाज़ करता रहा और ग़ैरों की ख़ामियों को बहाना-बाज़ी से पसंद करता रहा अब मेरा वजूद गुम हो चुका है क्यूँकि मैं अपनों से दूर हो कर सराब के चश्मों में अपनों की सूरतें तलाश कर रहा हूँ