ख़ुदा देता हमें भी पर तो सू-ए-आसमाँ जाते परिंदों की तरह उड़ कर यहाँ से हम वहाँ जाते कभी इस डाल पर रहते कभी उस डाल पर जाते दरख़्तों से कभी उड़ कर किसी छत पर उतर जाते सफ़र के वास्ते मुहताज गाड़ी के न हम होते न नज़रों में किसी भी रास्ते के पेच-ओ-ख़म होते न होती कोई पाबंदी न होती फ़िक्र सरहद की न कोई रोकता हम को न लगती पाँव में बेड़ी परिंदों की तरह होते अगर आज़ाद दुनिया में नज़र क्यों डालते हम पर कभी सय्याद दुनिया में