अपने भारत में जो उजाला है उसे जम्हूरियत ने ढाला है ये हक़ीक़त है सारी दुनिया से अपना दस्तूर भी निराला है सब को यकसाँ हुक़ूक़ जिस ने दिए इस में मौजूद सब हवाला है क्या ही छब्बीस जनवरी का ये दिन अज़्मत-ओ-एहतिशाम वाला है हम सभी एहतिराम करते हैं आज का दिन बुलंद-ओ-बाला है होता जाता है मुल्क फिर भी बुलंद लाख दुनिया ने बेच डाला है जिन के घर थे कभी अँधेरों में अब वहाँ भी बड़ा उजाला है ये है जम्हूरियत का ही सदक़ा जिस ने सूरज नया निकाला है मसअले वो भी जल्द हल होंगे आज जिन मसअलों से पाला है हैं यहाँ बा-कमाल लोग बहुत देश का जिन से बोल बाला है तुझ को जम्हूरियत सलाम मिरा तू मोहब्बत का इक शिवाला है अपने हिन्दोस्ताँ को देखो ‘मुही’ जिस की आग़ोश में हिमाला है