इस कुम्बा-परवर दुनिया में बेकस की हिमायत कौन करे जब ग़ासिब मुंसिफ़ बन जाएँ इंसाफ़ की ज़हमत कौन करे जो फ़र्क़ समझते हैं अब तक हिन्दी सिंधी पंजाबी में इन अक़्ल के पूरे लोगों से लड़ने की हिमाक़त कौन करे जो लुट कर आए हैं उन को सब्र आते आते आएगा लेकिन इस बेहिस दुनिया में एहसास-ए-हक़ीक़त कौन करे क्या रहना ऐसी बस्ती में हर बात जहाँ की उल्टी हो जब बाज़ ही खेत का दुश्मन हो फिर इस की हिफ़ाज़त कौन करे मा'लूम ये होता है अब तक यूसुफ़ के बरादर ज़िंदा हैं जब अपने दुश्मन हो जाएँ ग़ैरों की शिकायत कौन करे इन खाते-पीते लोगों से ये बात कोई पूछे जा कर ज़रदारों की दावत तुम ने की नादार की दावत कौन करे महलों के सुनहरी पर्दों में हर ऐब हुनर बन जाता है लेकिन इन दौलत-मंदों को झुटलाने की जुरअत कौन करे हम सब कुछ कर सकते हैं मगर ये सोच के फिर रह जाते हैं तुम लाख बुरे हो अपने हो अपनों से बग़ावत कौन करे