न गर्मियों का ज़ोर है न सर्दियों की मार है न धूप तन पे बार है न ठण्ड नागवार है हवा भी ख़ुश-गवार है न गर्म है न सर्द है न बिजलियाँ न आँधियाँ न अब्र है न गर्द है हैं सब्ज़ा-ज़ार इन दिनों पहाड़ दश्त और बन है सच तो यूँ बहार पर है आज-कल चमन चमन हैं जंगलों में सब्ज़ सब्ज़ खेत लहलहा रहे अजब अदा से झूम झूम कर हैं दिल लुभा रहे फ़ज़ा में दिलकशी ही कुछ ये आ गई है अब नई नज़र पड़ी जो खेत पर तो खेलती चली गई ख़िज़ाँ ने पेड़ों के लिबास फेंके थे उतार कर दुल्हन बना दिया उन्हें बहार ने सँवार कर चमन के फूल देख कर हमारी अक़्ल दंग है बनफ़शई सफ़ेद सुर्ख़ ज़र्द उन का रंग है दिलों में है कुछ आज-कल उमंग सी भरी हुई मसर्रतों के जोश से कली कली खिली हुई निखर गईं महावटों की बारिशों से पत्तियाँ निथर निथर के साफ़ हो गईं तमाम नद्दियाँ हैं पेड़ों में छुपे हुए परिंद चहचहा रहे ख़ुदा की शान देख कर ख़ुशी से हैं वो गा रहे ये लुत्फ़ देख देख कर ज़बाँ पे बार बार है ये मौसम-ए-बहार है ये मौसम-ए-बहार है