आया है बहार का ज़माना बाग़ों के निखार का ज़माना कलियाँ क्या क्या चटक रही हैं सारी रौशें महक रही हैं हल्की हल्की ये उन की ख़ुशबू फैली हुई है चमन में हर सू चिड़ियाँ गाती हैं गीत प्यारे सुनते हैं चमन में फूल सारे शाख़ों का बना लिया है झूला फूलों से लदा हुआ है झूला कोंपल हर इक है कैसी प्यारी सब्ज़ी में झलक रही है सुर्ख़ी कितनी राहत-फ़ज़ा हुआ है गोया जन्नत का दर खुला है ख़ुश ख़ुश हर एक आदमी है हर शय में बला की दिलकशी है ये सुब्ह का दिल-फ़रेब मंज़र ये शाम का हुस्न रूह-परवर ये रात को चाँदनी का आलम अल्लाह रे बे-ख़ुदी का आलम कैसी दिलचस्प चाँदनी है चादर इक नूर की तनी है हर दिल में उमंग किस क़दर है सब पर ही बहार का असर है सड़कों पे जो लोग जा रहे हैं ग़ज़लें 'अफ़सर' की गार रहे हैं