सुरमई पहाड़ों पर ये हरे भरे जंगल शाख़ शाख़ हरियाली चूमते हुए पंछी चार सू फ़ज़ाओं में ज़िंदगी महकती है फूल मुस्कुराते हैं रंग-ओ-नूर की चादर ओढ़ कर हवा निकली आसमान रौशन है दूर तक ज़मीं अपनी बाँह खोले माँ जैसी खेलते परिंदों को प्यार से बुलाती है तितलियों के झुरमुट से एक एक पगडंडी बे-नज़ीर लगती है जैसे कोई माँ बेटी साफ़ सुथरे आँगन में चुटकियों से रंगों की रौशनी लुटाती हूँ सुरमई पहाड़ों के मशरिक़ी किनारों पर रौशनी चमकती है ज़िंदगी दमकती है ये बहार का मौसम इस ज़मीं से उगता है इस ज़मीं का हिस्सा है जिस किसी का जी चाहे ये बहार ले जाए सुरमई पहाड़ों के जंगलों की शादाबी शाख़ शाख़ हरियाली जिस किसी का जी चाहे अपनी रूह महकाए