मैं तेरे लिए लाया हूँ फूल फूल जो पानी की छत तोड़ के हम से आन मिले थे ख़ुशबू जो मिट्टी की कच्ची पोस्त से बाहर कनपटियों तक फैली थी दिल जो ख़्वाहिश के बोझ से बोझल हिल ही नहीं सकते थे मैं लाया हूँ दिल से उठने वाली सर्द हवा की फाँक ज़मीं की ख़ाली मुट्ठी गेहूँ की गुड़िया जंगल जिन में सदा ही एक किताब खुली थी जोबन की